kavyasudha (काव्यसुधा)
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कलियुग की कैसी माया देखो
रावण, रावण को आग लगाये
दशानन था रावण
इनके हैं सौ- सौ सर
लोभ, मोह, मद, इर्ष्या ,
द्वेष, परिग्रह, लालच,
राग , भ्रष्टाचार, मद, मत्सर
रहे बजबजा इनके भीतर
फिर भी जरा नहीं शर्माए .
कलियुग की कैसी माया देखो
रावण, रावण को आग लगाये .
पंडित था रावण ,
था, अति बलशाली ,
धर्महीन हैं ये, हृदयहीन ,
विवेकशून्य , मर्यादा से खाली.
आचरण हो जिनका राम सा
जनता जिनके राज्य में
भयमुक्त हो, फूले नहीं समाये.
उन्हें ही हक है, आगे आकर
रावण को आग लगाये .
… नीरज कुमार ‘नीर’
kavineeraj.blogspot.com
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