Menu
blogid : 14130 postid : 789634

अषाढ़ का कर्ज

kavyasudha (काव्यसुधा)
kavyasudha (काव्यसुधा)
  • 29 Posts
  • 11 Comments

कुछ लिखा है, कुछ लिखना बाकी है,
मेरे इमान का अभी बिकना बाकी है.

फूल तो खिल के मुरझा चुके
अब कांटो का खिलना बाकी है.

कहते हैं आज़ादी परिवर्तन लाती है,
अभी मुल्क में परिवर्तन आना बाकी है.

लिए तो जो कर्ज पिछले अषाढ़ में,
इस बार भी अकाल है, चुकाना बाकी है.

हरिया के बच्चे शहर चले गए,
अभी हरिया का जाना बाकी है,

उसके बाप की भूख से मौत हो गयी
अभी उसकी लाश का जलाना बाकी है.

……………….. नीरज ‘नीर’
आप मेरी कवितायें यहाँ भी पढ़ सकते हैं : http://kavineeraj.blogspot.in/

Tags:                        

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply