kavyasudha (काव्यसुधा)
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जालिम कैसे निबाहता है रस्म ए इश्क़
पहले याद करता है फिर भुला देता है
आता है कभी करीब फिर दूर जाता है
देता है गम ए दिल और रूला देता है
रहती है जब उम्मीद तो आता ही नहीं
आता है रातों को और जगा देता है
रोशनी फैले भी तो कैसे हयात में
जलाता है इक दीया फिर बुझा देता है
उनके अंदाजे बरहमी के क्या कहिए
जाने को कहता है फिर बुला लेता है
…………. neeraj kumar neer
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