kavyasudha (काव्यसुधा)
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“परिकथा” जनवरी – फरवरी 2015 में मेरी यह कविता प्रकाशित हुई : ::::
हाथ बढ़ाकर चाँद को छूना,
फूलों की वादियों में घूमना,
या लाल ग्रह की जानकारियाँ जुटाना।
मेरे सपनों मे यह सब कुछ नहीं है ।
मेरे सपनों में है :
नए चावल के भात की महक ,
गेहूं की गदराई बालियाँ,
आग में पकाए गए
ताजे आलू का सोन्हा स्वाद ,
पेट भरने के उपरांत उँघाती बूढ़ी माँ।
किसी महानगर के
दस बाय दस के कमरे में
बारह लोगों से
देह रगड़ते हुए
मेरे सपनों मे
कोई राजकुमारी
नहीं आती।
नहीं बनता
कोई स्वर्ण महल।
मेरे सपनों में आता है
बरसात में एक पक्की छत,
जो टपकती नहीं है।
उसके नीचे अभिसार पश्चात
नथुने फूलाकर सोती हुई मेरी पत्नी ।
आप कहेंगे यह भद्रता नहीं है
लेकिन मेरा सपना यही है ।
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नीरज कुमार नीर
neeraj kumar neer
read my other poems here : KAVYASUDHA ( काव्यसुधा ):
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